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अ॒जा अ॒न्यस्य॒ वह्न॑यो॒ हरी॑ अ॒न्यस्य॒ संभृ॑ता। ताभ्यां॑ वृ॒त्राणि॑ जिघ्नते ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ajā anyasya vahnayo harī anyasya sambhṛtā | tābhyāṁ vṛtrāṇi jighnate ||

पद पाठ

अ॒जाः। अ॒न्यस्य॑। वह्न॑यः। हरी॒ इति॑। अ॒न्यस्य॑। सम्ऽभृ॑ता। ताभ्या॑म्। वृ॒त्राणि॑। जि॒घ्न॒ते॒ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:57» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:23» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर इन दोनों से मनुष्यों को क्या प्राप्त होना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! उन दोनों के बीच जिस (अन्यस्य) भूमि के सम्बन्ध (वह्नयः) पदार्थ को एक स्थान से दूसरे स्थान में पहुँचानेवाले (अजाः) नित्य अर्थात् जो नष्ट नहीं होते वा जिस (अन्यस्य) और दूसरे बिजुलीरूप अग्नि के (हरी) हरणशील (सम्भृता) अच्छे प्रकार धारण किये हुए धारण और आकर्षण गुण वर्त्तमान हैं (ताभ्याम्) उनसे जो (वृत्राणि) धनों को (जिघ्नते) प्राप्त होता है, उसका तुम सत्कार करो ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! मिले हुए भूमि और बिजुली की उत्तेजना से तुम धनों को प्राप्त होओ ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनराभ्यां मनुष्यैः किं प्राप्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्यास्तयोर्यस्याऽन्यस्य वह्नयोऽजा यस्याऽन्यस्य हरी सम्भृता वर्त्तेते ताभ्यां यो वृत्राणि जिघ्नते तं यूयं सत्कुरुत ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अजाः) नित्याः (अन्यस्य) भूमेः (वह्नयः) वोढारः (हरी) हरणशीलौ धारणाकर्षणौ (अन्यस्य) विद्युतः (सम्भृता) सम्यग्धृतौ (ताभ्याम्) (वृत्राणि) धनानि (जिघ्नते) प्राप्नोति ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! मिलितयोर्भूमिविद्युतोः सकाशाद्यूयं धनानि प्राप्नुत ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! भूमी व विद्युतच्या संयोगाने तुम्ही धन प्राप्त करा. ॥ ३ ॥